नई दिल्ली।
भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई ने 11 अक्टूबर 2025 को ऑनलाइन उत्पीड़न, साइबर धमकी और ‘डिजिटल स्टॉकिंग’ के बढ़ते खतरों पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने विशेष रूप से बालिकाओं की डिजिटल डेटा और डीपफेक तस्वीरों के दुरुपयोग के प्रति संवेदनशीलता पर जोर देते हुए इसके लिए विशिष्ट कानून बनाने और कानून प्रवर्तन एजेंसियों व नीति निर्माताओं को विशेष प्रशिक्षण देने की आवश्यकता बताई।

सीजेआई ने यूनिसेफ, भारत के सहयोग से सुप्रीम कोर्ट की किशोर न्याय समिति द्वारा आयोजित ‘बालिकाओं की सुरक्षा: भारत में उनके लिए सुरक्षित और सक्षम वातावरण की ओर’ विषय पर राष्ट्रीय वार्षिक हितधारक परामर्श में यह बात कही। उन्होंने कहा कि संवैधानिक और कानूनी संरक्षण के बावजूद, देश भर में कई बालिकाएं अपने मौलिक अधिकारों और जीवन-निर्वाह के बुनियादी साधनों से वंचित हैं। यह असुरक्षा उन्हें यौन शोषण, उत्पीड़न और हानिकारक प्रथाओं के प्रति अत्यधिक जोखिम में डालती है।
सीजेआई ने जोर देकर कहा कि बालिकाओं की सुरक्षा केवल उनके शारीरिक संरक्षण तक सीमित नहीं है, बल्कि उनकी आत्मा को मुक्त करने और सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित करने की बात है। उन्होंने एक ऐसे समाज के निर्माण की आवश्यकता पर बल दिया जहां बालिकाएं बिना भय के अपनी आकांक्षाओं को शिक्षा और समानता के माध्यम से पूरा कर सकें। इसके लिए पितृसत्तात्मक रीति-रिवाजों का सामना कर उन्हें समाप्त करना होगा, जो बालिकाओं को उनके उचित स्थान से वंचित करते हैं।