बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में 15 साल पहले लापता हुए भिलाई स्टील प्लांट (बीएसपी) के तकनीशियन की पत्नी को बड़ी राहत दी है। जस्टिस संजय के. अग्रवाल और जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने बीएसपी और स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) की याचिकाएं खारिज कर दीं। कोर्ट ने आदेश दिया है कि पीड़ित पत्नी को तीन माह के भीतर बकाया वेतन, फैमिली पेंशन, ग्रेच्युटी और लीव एनकैशमेंट का पूरा भुगतान किया जाए।

2010 से लापता थे कर्मचारी
राजहरा माइंस में सीनियर टेक्नीशियन (इलेक्ट्रिकल) पद पर कार्यरत विकास कोठे 14 जनवरी 2010 को मानसिक बीमारी के चलते लापता हो गए थे। उनकी पत्नी चंदा कोठे ने गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई, लेकिन बीएसपी ने संवेदनहीन रवैया अपनाते हुए चार्जशीट जारी की और एकतरफा जांच के बाद 17 सितंबर 2011 को सेवा से बर्खास्त कर दिया।
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कैट ने दिया था पत्नी को न्याय
पति की बर्खास्तगी के खिलाफ चंदा कोठे ने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) का दरवाजा खटखटाया। कैट ने बर्खास्तगी आदेश रद्द कर सभी सेवा लाभ देने का निर्देश दिया। इसके खिलाफ बीएसपी हाईकोर्ट पहुंचा, मगर कोर्ट ने कैट के आदेश को सही ठहराया।
हाईकोर्ट ने साफ किया कानून
बीएसपी का कहना था कि पत्नी को सिविल कोर्ट से मृत्युप्रमाण पत्र लेना चाहिए था और उन्हें याचिका दायर करने का अधिकार नहीं है। लेकिन हाईकोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 108 के तहत यदि कोई व्यक्ति सात साल से अधिक समय तक लापता है, तो उसे कानूनी रूप से मृत माना जाएगा। इसके लिए अलग से कोर्ट डिक्री की जरूरत नहीं है।
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पत्नी की आजीविका पर पड़ा असर
हाईकोर्ट ने माना कि चंदा कोठे पूरी तरह अपने पति पर निर्भर थीं और बर्खास्तगी का सीधा असर उनकी आजीविका पर पड़ा। केंद्र सरकार के ऑफिस मेमोरेंडम का हवाला देते हुए कोर्ट ने स्पष्ट किया कि लापता सरकारी कर्मचारी के परिजनों को पेंशन सहित सभी सेवा लाभ मिलना ही चाहिए।